वस्तुतः पांडुलिपि ग्रन्थागार वृन्दावन शोध संस्थान का हृदय स्थल है। इसी ग्रंथागार के माध्यम से संस्थान के अकादमिक गतिविधियों को ऊर्जा प्राप्त होती है।
वृन्दावन एवं ब्रज के अनेक मन्दिरों, मठों आदि से संगृहीत ग्रन्थ राषि आज 30,000 से अधिक संख्या में ग्रन्थागार में सुरक्षित हैं।
इनमें संस्कृत, हिन्दी, उड़िया, बंगाली, पंजाबी, उर्दू, अरबी एवं फारसी भाषाओं में हस्तनिर्मित कागज, ताड़पत्र, बाँसपत्र, केले की छाल आदि पर लिखित यह ग्रन्थ राषि अपनी प्राचीनता और दुर्लभता का प्रमाण स्वयं देती है।
भक्ति काव्य, पुराण, तन्त्र-मन्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, नीति, व्याकरण, धर्म-दर्षन आदि विषयों में अनेक विख्यात सन्तों, आचार्यों, विद्वानों द्वारा रचित इन पाण्डुलिपियों के अतिरिक्त संस्थान के इस ग्रन्थागार में दुर्लभ दस्तावेजों का भी संग्रह विद्यमान है।
संग्रहालय में साहित्य, संगीत, नृत्य, चिकित्सा, विज्ञान और ज्योतिष जैसे कई विषयों को कवर करने वाली विभिन्न प्रकार की पांडुलिपियाँ हैं।
लेखन सामग्री में बंसापत्र (बाँस की पत्तियाँ), तलपात्र (बेर के पत्ते) और कागज़ (कागज) का उपयोग किया गया है। तालपत्र पर लिखी गई रचनाएं बंगाल और उड़ीसा की हैं जो की अति महत्वपूर्ण एवं लक्षण हैं।
जबकि कागजी पांडुलिपियां ज्यादातर ब्रज क्षेत्र से हैं। सोने की स्याही से लिपटी कुरान की पवित्र आयतें इस्लामी सुलेख का एक दुर्लभ कार्य है।
अलंकृतों की श्रेणी में मकुता (सिर-आभूषण), चंद्रिका (हार) कुंडला (कान के छल्ले), और कर्मकांडों के साथ-साथ पूजा में प्रयुक्त सामग्री, प्रदर्शन की मुख्य विशेषताएं हैं।
वृन्दावन शोध संस्थान की स्थापना मूल रूप से पांडुलिपियों के संग्रह, संरक्षण, शोध और प्रकाषन के लक्ष्य को लेकर की गई थी।
वर्ष 1968 में हाथरस निवासी मै0 रामदास गुप्ता ने दुर्लभ ग्रन्थों के संग्रह का पुनीत कार्य इस उद्देष्य से प्रारम्भ किया कि इनका समुचित वैज्ञानिक विधि से संरक्षण सम्भव हो और ये दीर्घ जीवी हो सकें।
वस्तुतः पांडुलिपि ग्रन्थागार वृन्दावन शोध संस्थान का हृदय स्थल है। इसी ग्रंथागार के माध्यम से संस्थान के अकादमिक गतिविधियों को ऊर्जा प्राप्त होती है।
वृन्दावन एवं ब्रज के अनेक मन्दिरों, मठों आदि से संगृहीत ग्रन्थ राषि आज 30,000 से अधिक संख्या में ग्रन्थागार में सुरक्षित हैं।
‘ग्रंथ प्रभु के विग्रह’ ध्येय वाक्य को सार्थक करते हुए वृन्दावन शोध संस्थान ने विगत पाँच दशकों से अधिक समय में ब्रज संस्कृति के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक पक्षों पर विविधतापूर्ण कार्य करने के साथ ही जहाँ एक ओर शोध अध्येताओं के लिये अध्ययन का मार्ग प्रशस्त किया है
ब्रज संस्कृति तथा यहाँ विद्यमान साहित्यिक सम्पदा के संरक्षण हेतु श्रीराधाकृष्ण की रासस्थली वृन्दावन में वृन्दावन शोध संस्थान की स्थापना विहार पंचमी के अवसर पर 24 नवंबर, 1968 तदनुसार संवत् 2025, मार्गशीर्ष माह में शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि के दिन रविवार को हुई थी।
पवित्र उद्देश्य तथा समर्पण भाव के चलते शनैः-शनैः संस्थान को ख्याति प्राप्त होती गई तथा कालान्तर में इसे भारत सरकार तथा उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति विभागों के द्वारा अनुदान प्राप्त होने लगा।
ब्रज में आने वाले पर्यटकों के लिये भी ब्रज संस्कृति से साक्षात्कार कराने वाले अनेक पक्षों को अध्येताओं की सुविधार्थ सहज सुलभ कराया है।
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