इतिहास

संस्थान का इतिहास

वृन्दावन में लोई बाजार स्थित अपने पूर्वजों की श्रीनारायण धर्मशाला में डाॅ.रामदास गुप्त प्रायः आते रहते थे।  इसी धर्मशाला में विहार पंचमी के शुभ मुहूर्त के अवसर पर 24 नवंबर 1968 को डाॅ.गुप्त के द्वारा नष्ट होती पांडुलिपि संपदा को संरक्षण प्रदान हेतु वृंदावन शोध संस्थान की स्थापना की गई। इस संस्थान का उद्घाटन तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री डाॅ.कर्ण सिंह द्वारा किया गया। वृंदावन शोध संस्थान का उद्देश्य था वृंदावन और ब्रज क्षेत्र में विभिन्न स्थलों पर समुचित संरक्षण के अभाव में क्षरित हो रही पांडुलिपि संपदा का संग्रह और उन्हें वैज्ञानिक संरक्षण प्रदान करने के साथ ही उन्हें शोध कार्य हेतु उपयोग में लाकर प्रकाशित करना। अनेक विद्वान, स्थानीय भक्त और संतजनों ने इस पुनीत कार्य में सहयोग किया और विभिन्न मंदिरों, मठों, आश्रमों आदि से संपर्क कर इन ग्रंथों के महत्व से अवगत कराया गया जिसके फलस्वरूप यह ग्रंथ संपदा एकत्रित होती गई। प्रारंभ में डाॅ. गुप्त के द्वारा ही अर्जित संसाधनों से ही श्री नारायण धर्मशाला में संस्थान संचालित होता रहा। कालांतर वर्ष 1984 में रमणरेती स्थित दाऊजी की बगीची में वर्तमान भवन में उत्तर प्रदेश सरकार की वित्तीय सहायता से यह संस्थान स्थानांतरित हुआ। डाॅ.गुप्त का कविता संग्रह ‘गोधूलि बेला’ नामक पुस्तक के माध्यम से प्रकाशित है। इससे पूर्व ब्रज के प्रख्यात विद्वान डाॅ.शरणबिहारी गोस्वामी के साथ वृंदावनीय रसोपासना से संबंधित ग्रंथ ‘रहस्य दर्पण’ और ‘रहस्य चन्द्रिका’ का संपादन भी उन्होंने किया, यह ग्रंथ भी संस्थान द्वारा ही प्रकाशित किया गया।

old
पुराना संस्थान (श्रीनारायण धर्मशाला)