मंदिर एवं धार्मिक स्थल

 
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    84 खंबा मंदिर, गोकुल

    नंद भवन, जिसे चौरासी खंबा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, गोकुल में सबसे अधिक देखे जाने वाले पर्यटक आकर्षणों में से एक है। यह आगंतुकों और भक्तों के बीच एक आकर्षण रखता है क्योंकि यहीं पर भगवान कृष्ण ने अपने असली माता-पिता को राजा कंस द्वारा कैद किए जाने के बाद अपने बचपन के दिन बिताए थे। यह घर भगवान कृष्ण के पालक पिता नंद महाराज का था। इसे चौरासी खंबा मंदिर कहा जाता है क्योंकि यह मंदिर 84 स्तंभों पर टिका हुआ है।

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    बंदी देवी, बलदेव

    बंदी ब्रजमंडल में बड़ा गांव है, बलदेव नगर से 4 कि.मी. पश्चिमोत्तर दिशा में बलदेव से राया जाने वाले मार्ग पर है।
    आनंद रामायण में बंदी को यमुना से सात मील दूर बिंदुसार नगरी नाम से बताया गया है। मंदिर में बंदी देवी, आनंदी देवी, मनोवांछा देवी सेवित हैं। गांव में मंदिर का निर्माण सन् 1300 के आसपास देवी के परम भक्त आगरा निवासी सेठ घासीराम ने कराया था। बंदी देवी के चमत्कार का वर्णन भागवत के दसवें स्कंद के तीसरे और चौथे अध्याय में मिलता है। 

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    आशेश्वर महादेव, नंदगांव

    नंदगांव भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है,  इस दिव्य नगर में नंदभवन मंदिर के पास एक छोटी सी झील आशेश्वर कुंड है। झील में पन्ना हरा पानी दुनिया भर के तीर्थयात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देता है। इस झील के किनारे आशेश्वर महादेव मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि नंदगांव का आशेश्वर मंदिर तीर्थयात्रियों को शांति और भक्ति प्रदान करता है। इस सुखदायक मंदिर में आने वाला प्रत्येक तीर्थयात्री भगवान आशेश्वर महादेव के आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं।

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    बांके बिहारी मंदिर, वृन्दावन

    यह ब्रज के प्राचीनतम मंदिरों में एक है। निधिवन से बांकेबिहारी का प्राकट्य कराने वाले स्वामी हरिदास जी की परम्परा के शिष्यों द्वारा सन् 1921 में इसका निर्माण कराया गया था। इस मंदिर को गोस्वामी समाज के संयुक्त प्रयास से विक्रम संवत 1921 सन् 1864 ई. में भव्य विशाल रूप प्राप्त हो गया। बिहारी जी का यह मंदिर शिल्प कला की दृष्टि से अति सुंदर है। यह मंदिर मनोकामना पूरा करने वाला माना जाता है। 

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    भूतेश्वर महादेव, मथुरा

    यह मंदिर मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान के दक्षिण में श्री भूतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात है।
    श्री भूतेश्वर महादेव के बारे में यह भी मान्यता है कि श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ द्वारा ब्रज के चारों ओर उत्तर में श्री गोकर्णेश्वर, दक्षिण में रंगेश्वर, पश्चिम में भूतेश्वर तथा पूर्व में पिप्पलेश्वर महादेव के रूप में ब्रज के रक्षक क्षेत्रपाल स्थापित किए थे। इन्हें मथुरा का कोतवाल भी कहा जाता है। इन्हीं के नाम पर मथुरा को ‘भूतेश्वर क्षेत्र’ कहा जाता है।

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    ब्रह्मण्ड बिहारी, गोकुल

    गोकुल यमुना के ब्रह्मांड घाट पर ब्रह्मांड बिहारी का मंदिर स्थित है, कहा जाता है कि यही वह जगह है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने मिट्टी खाकर माता यशोदा को मुंह में ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे, इसीलिए उस स्थान को ब्रह्मांड घाट के नाम से जाना जाता है। इन मिट्टी के पेड़ों को बनाने के लिए बरसात के मौसम में यमुनाघाट से मिट्टी निकलवाई जाती है। उसे सुखाया जाता है फिर कूटा और छाना जाता है। इसके बाद मिट्टी के पेड़े तैयार किए जाते हैं।

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    चकलेश्वर महादेव मंदिर (चक्रेश्वर महादेव), गोवर्धन

    यह मंदिर पवित्र मानसी गंगा के उत्तरी तट पर स्थित है।स्थानीय लोगों का कहना है कि मूल मंदिर यदुवंशी के महाराजा वज्रनाभ द्वारा बनाया गया था, लेकिन लगातार मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे नष्ट कर दिया था। शिवलिंगों के पीछे एक प्राचीन पत्थर पूरी कहानी का वर्णन करता है कि कैसे भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों को बचाया और गोवर्धन पर्वत को उठाया। प्रत्येक नक्काशी इस मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण है।

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    चरण पहाड़ी, काम्यवन  

    चरण पहाड़ी ब्रजमण्डल के प्रसिद्ध काम्यवन में स्थित है।गोचारण करते समय श्रीकृष्ण अपने सखाओं को खेलते हुए छोड़कर इस परम रमणीय स्थान पर गोपियों से मिले। सब गोपियों ने अपनी-अपनी आँखें मूँद लीं और भगवान कृष्ण निकट ही पर्वत की एक कन्दरा में प्रवेश कर गये। सखियाँ चारों ओर खोजने लगीं, किन्तु कृष्ण को ढूँढ़ नहीं सकीं। वे चिन्तित हुई कि कृष्ण हमें छोड़कर कहाँ चले गये? वे कृष्ण का ध्यान करने लगीं, वह स्थल 'ध्यान कुण्ड' है।

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    दानघाटी, गोवर्धन  

    मथुरा–डीग मार्ग पर गोवर्धन में यह मन्दिर स्थित है। गिर्राजजी की परिक्रमा हेतु आने वाले श्रृद्धालु इस मन्दिर में पूजन करके अपनी परिक्रमा प्रारम्भ कर पूर्ण लाभ कमाते हैं। इस मन्दिर की बहुत महत्ता है। ब्रज गोपियां इसी रास्ते से मथुरा के राजा कंस को माखन का ''कर'' चुकाने जाती थीं। कन्हैया इसी स्थली पर ग्वाल बाल के साथ माखन और दही का दान लेते थे। जब भगवान कृष्ण ने इन्द्र की पूजा बंद कराई थी तो बृजवासियों से छप्पन भोग लगवाने के लिए कहा था। 

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    दाऊजी मंदिर, बलदेव

    यह मंदिर मथुरा जनपद के पूर्वी छोर पर मथुरा-सादाबाद मार्ग पर लगभग 20 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
    दाऊजी मन्दिर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम से सम्बन्धित है। मथुरा में यह 'वल्लभ सम्प्रदाय' का सबसे प्राचीन मन्दिर माना जाता है। वर्तमान मंदिर में श्रीदाऊजी के साथ श्री रेवती जी विराजमान हैं। दाऊजी का हुरंगा जग विख्यात है। संवत 1638 में वर्तमान मंदिर का निर्माण गोस्वामी गोकुलनाथ तथा गोस्वामी कल्याणदेव जी ने कराया था।

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    गोकुल चन्द्रमा जी मंदिर, कामवन

    यह मंदिर कामवन में देवकीनन्दन मार्ग पर स्थित है। गर्भगृह में श्री गोकुल चन्द्रमा जी के विग्रह विराजमान हैं। श्री गोकुल चन्द्रमा जी के निज मंदिर का भाग तो आज भी सुरछित है किन्तु उस में नन्द भवन बनावा दिया गया है। श्रीवल्लभ सम्प्रदाय के विग्रह– श्रीकृष्णचन्द्रमाजी, नवनीतप्रियाजी और श्रीमदनमोहनजी हैं। इन्हे पुष्टिमार्ग की पंचम पीठ माना जाता है। विट्ठलनाथ जी के पंचम पुत्र श्री रघुनाथ जी द्वारा सन् 1575 में श्री गोकुल चन्द्रमा जी को कामवन में पधराया गया।

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    गोकुलनाथजी मंदिर, गोकुल

    श्री गोकुलनाथजी चार भुजाओं के साथ एक छोटा सुनहरा श्री कृष्ण स्वरूप है, उनके दाहिने हाथ में गिरिराज गोवर्धन है, जबकि उनके निचले बाएं हाथ में एक शंख है। वह अपने अन्य दो हाथों से बांसुरी बजाते है। उनके दोनों ओर स्वामी श्री राधा और श्री चंद्रावली जी हैं। श्री गोकुलनाथजी का यह स्वरूप तब प्रकट होता है जब श्री कृष्ण ने गिरिराज गोवर्धन को उठाया था। श्री गोकुलनाथजी 18वीं शताब्दी में निर्मित उनकी हवेली में गोकुल धाम में निवास करते हैं।

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    गोपेश्वर महादेव, वृन्दावन

    भगवान श्रीकृष्ण ने जब गोपियों के साथ महारास किया था तो इस मनोहरी दृश्य को देखने के लिए सभी देवता पृथ्वीलोक पर आए थे, लेकिन उन्हें महारास में शामिल नहीं होने दिया गया।  सभी देवता वापस लौट गए। भगवान शंकर नहीं लौटे। यमुना ने भोले भंडारी को गोपी का रूप धारण कराया। गोपी रूप में सजे महादेव को भगवान श्रीकृष्ण ने पहचान लिया। महारास के बाद कृष्ण ने शंकर भगवान की पूजा की और राधा जी ने वरदान दिया कि आज के बाद उनका गोपेश्वर रूप यहां गोपी के रूप में पूजा जाएगा।

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    गोविन्द देव मंदिर, वृन्दावन


    भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र श्री वज्रनाभ ने इस मंदिर को भी स्थापित किया था। यह वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है, जिसका निर्माण काल- ई. 1590 अथवा संवत् 1647, शासन काल - अकबर (मुग़ल), निर्माता- राजा मानसिंह पुत्र राजा भगवान दास, आमेर (जयपुर, राजस्थान) है। इस मन्दिर की शिल्प रूपरेखा का निरीक्षण रूप गोस्वामी और सनातन गुरु, कल्यानदास (अध्यक्ष), माणिक चन्द्र चोपड़ा (शिल्पी), गोविन्द दास और गोरख दास (कारीगर) के निर्देशन में हुआ।

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    हरिदेव मंदिर, गोवर्धन

    श्री हरिदेव जी का मंदिर श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने स्थापित किया था।
    आमेर के राजा भगवानदास ने वि0सं0 1637 में इस मंदिर का पुनः दर्शनीय एवं आकर्षक बनाया। 68 फीट लम्बे और 20 फीट चौड़े भूविन्यास के आयता कार मन्दिर का गर्भगृह इसी माप के अनुसार बनाया गया। जिसके चारों ओर खुले मध्य भाग में तीन मेहराब बने हुए हैं। जिसे औरंगजेब ने वि0सं0 1736 में नष्ट कर दिया था। औरंगजेब के आक्रमण के बाद यह मंदिर पुनः बना है।

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    जयपुर मंदिर, वृन्दावन

    यह देवालय निम्बार्क सम्प्रदाय के संत गिरधारीशरण की प्रेरणा से जयपुर के राजा सवाई माधोसिंह द्वारा सन् 1881 में बनवाया गया था। इसे बनाने में 30 साल से भी ज्यादा का समय लगा और कई हजार लोगों ने काम किया था। ऐसा कहा जाता है कि महाराज ने खुद प्रति वर्ष इसके निर्माण और संरचना का निरीक्षण किया था। यह मंदिर अपनी सुन्दर नक्काशी एवं स्थापत्य शैली के लिए प्रसिद्ध है। यहां श्री राधा-माधव, आनंद-बिहारी और हंस-गोपाल विराजमान हैं।

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    जल महल, डीग

    डीग का जलमहल भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु विश्व में अपना विशेष स्थान रखता है। इसका कारण यहां का गोपाल भवन जो सामने से एक मंजिल, पार्श्व से दो मंजिल तथा पीछे गोपाल सागर में चार मंजिल हैं। जबकि छत एक ही है। यह महल कृष्ण सागर झील के किनारे बना हुआ है।
    इस महल का निर्माण राजा बदन सिंह के पुत्र महाराजा सूरजमल ने 1730 में करवाया था  इस महल की वास्तुकला की बात करे तो डीग महल राजपूत और मुग़ल शैली का मिश्रण है।

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    श्रीकृष्ण जन्मभूमि, मथुरा

    श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर पहला मंदिर श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने बनवाया था। कुछ वर्षों बाद सन् 1150 में जज्ज नाम के व्यक्ति ने एक नया मंदिर बनवाया। इस मंदिर में सन् 1515 में चैतन्य महाप्रभु जी आये। 16वीं शताब्दी में सिकन्दर लोदी ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। तत्पश्चात ओरछा के राजा वीरसिंह बुंदेला ने एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया। कालान्तर में श्री जुगल किशोर बिरला ने सन् 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान का पुनः निर्माण कार्य आरम्भ किया।

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    जुगलकिशोर मंदिर, वृन्दावन

    केशीघाट के समीप स्थित यह प्राचीन मंदिर वृन्दावन के प्राचीन मंदिरों में से एक है। मंदिर का निर्माण मुगल सम्राट जहांगीर के शासनकाल में नोनकरण राजपूत ने वि.स. 1684 के आसपास करवाया था। मंदिर लाल बलुआ पत्थर से निर्मित शिखर युक्त बना हुआ है। मुख्य मंदिर के बाहरी और आन्तरिक वर्ग अष्टकोणीय हैं, वर्तमान में मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। इसका जगमोहन दूसरे मन्दिरों के जगमोहन की अपेक्षा कुछ बड़ा है जो 25 वर्गफीट का है।

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    श्री माँ कात्यायनी देवी मंदिर, वृन्दावन

    कात्यायनी पीठ मंदिर का निर्माण फरवरी 1923 में स्वामी केशवानंद ने करवाया था। श्री यमुना नदी के किनारे स्थित राधाबाग अति प्राचीन सिद्धपीठ के रूप में श्री श्री माँ कात्यायनी देवी विराजमान हैं। पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि श्रीधाम वृन्दावन में भगवती देवी के केश गिरे थे, इसका प्रमाण प्रायः सभी शास्त्रों में मिलता ही है। मां कात्यायनी के साथ साथ इस मंदिर में पंचानन शिव, विष्णु, सूर्य तथा सिद्धिदाता श्री गणेश की मूर्तियां विराजमान हैं। 

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    केशीघाट, वृन्दावन

    वृन्दावन की उत्तर-पश्चिम दिशा में पौराणिक और स्थापत्य महत्व का केशीघाट स्थित है। यमुना के किनारे चीरघाट से कुछ पूर्व दिशा में केशी घाट अवस्थित है। श्रीकृष्ण ने यहाँ केशी दैत्य का वध किया था। यह घाट भरतपुर राजघराने की रानी लक्ष्मी द्वारा 18वीं शताब्दी में बनवाया गया था। श्रीकृष्ण ने केशी दैत्य का संहार कर उसे इसी स्थान पर मुक्ति दी थी। आज भी केशीघाट कृष्ण की लीला को अपने हृदय में संजोये हुए विराजमान है।

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    किशोर वन, वृन्दावन

    भक्त कवि हरिराम व्यास जी की साधना स्थली के रूप में प्रसिद्ध यह स्थान वृन्दावन के बाग बुंदेला में स्थित एक संरक्षित वन क्षेत्र है। 4200 वर्गगज क्षेत्रफल में फैले इस स्थान में श्री हरिराम व्यास जी की समाधि तथा उनके आराध्य श्रीयुगलकिशोर जी जो आजकल मध्यप्रदेश में विराजमान हैं का प्राकटय स्थल विद्यमान है। श्री हरिराम व्यास जिन्हें वृंदावन के ब्रज रसिक विशाखा सखी अवतार रूप में मानते हैं, वे यहीं भजन करते थे। उनकी भजन कुटिया और समाधि मंदिर भी यहीं स्थित है।

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    कृष्ण कुंड, गोवर्धन

    जब कृष्ण ने सांढ़ रूपी भीमकाय दानव का वध किया तो राधा ने उन्हें कई पवित्र नदियों में स्नान कर अपने पाप को धोने को कहा। कृष्ण  जिस जगह पर खड़े थे वहां पर ज़ोर से पैर पटका। वहां पर कुंड बन गया। भगवान कृष्ण ने स्नान किया और इस कुंड को श्याम कुंड भी कहते हैं। कृष्ण के इस तरह के शक्ति प्रदर्शन से राधा क्रोधित हो गयीं। उन्होंने अपनी सहेली गोपियों के साथ मिलकर एक गड्ढा खोदा और उसमें मानसी गंगा का पानी भर दिया। इस तरह गोवर्धन के पास एक विशाल झील राधा कुंड का निर्माण हुआ।

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    श्री कुशल बिहारी मंदिर, बरसाना

    राजस्थान के राजा ने इस मंदिर को बनवाया था। मंदिर का निर्माण पूरा होने के बाद वह श्री राधारानी मंदिर, बरसाना में वर्तमान में निवास कर रहे श्री लाडली लाल के सुंदर देवता को मंदिर में स्थापित करना चाहते थे। जब यह पूरा हो गया, तो देवताओं की स्थापना के समय, छोटे मंदिर के देवताओं को इस स्थान पर लाया गया। लेकिन स्थापना वाले दिन श्री राधारानी ने राजा को सपने में कहा, "वह स्थान जहां छोटा मंदिर स्थित है, वह मेरा घर है, यह नहीं।" इसलिए, राजा ने एक और बड़ा मंदिर बनवाया जहां छोटा मंदिर था।  

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    कुसुम सरोवर, गोवर्धन

    कुसुम सरोवर उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा नगर में गोवर्धन से लगभग 2 किलोमीटर दूर राधाकुण्ड के निकट स्थापत्य कला के नमूने का एक समूह जवाहर सिंह द्वारा अपने पिता सूरजमल (ई.1707-1763) की स्मृति में बनवाया गया। ई. 1675 से पहले यह कच्चा कुण्ड था जिसे ओरछा के राजा वीर सिंह ने पक्का कराया उसके बाद राजा सूरजमल ने इसे अपनी रानी किशोरी के लिए बाग़-बगीचे का रूप दिया। बाद में जवाहर सिंह ने इसे अपने माता पिता के स्मारक का रूप दे दिया।

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    मानसरोवर कुण्ड, गोवर्धन

    एक बार श्री राधा रानी रास-लीला के मध्य एक उदास मनोदशा (मान) में थीं । रास-लीला वृन्दावन धाम में मनोहर जगह हो रही थी। मान की लीला में उन्होंने रास लीला का त्याग कर, यमुना को पार करके वो एक एकांत वन में आ गई। श्री राधा रानी ने श्री कृष्ण के वियोग में आंसू बहाये। उनकी आँखों से आंसू बहने लगी और उन आसुओं से एक कुंड बन गया और इसका नाम मानसरोवर हो गया । मानसरोवर कुण्ड एवं घाट का निर्माण आमेर के राजा मानसिंह ने कराया था ।

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    मदनमोहन मंदिर, वृन्दावन

    वल्लभ कुल की सप्तम निधि श्री मदनमोहन जी हैं। यह मंदिर कामवन में देवकीनन्दन मार्ग पर स्थित है। मंदिर लगभग 700 वर्ष प्राचीन माना जाता है। गर्भगृह में श्रीमदनमोहन जी का श्रीविग्रह विराजमान हैं। सन् 1765 में गोस्वामी ब्रजरमण ने मदनमोहन जी को जयपुर स्थापित किया। कुछ समय बाद सन् 1865 में इन्हें बीकानेर पधराया गया। उसके बाद सन् 1871 में गोस्वामी ब्रजपाल द्वारा श्रीमदनमोहन जी के श्रीविग्रह को पुनः कामवन में स्थापित किया, तब से यहीं पर हैं। 

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    महाविद्या टीला, मथुरा

    मथुरा की परिक्रमा में स्थित यह टीला पुराणों में वर्णित अंबिका वन के निकट स्थित है। वर्तमान में जो मंदिर यहाँ स्थित है वह मराठों द्वारा निर्मित है। देवी की वर्तमान प्रतिमा को सन् 1907 में  यहां स्थापित किया गया था। महाविद्या नामक एक बौद्ध देवी का लेख बौद्ध साहित्य में भी मिलता है। विजय दशमी के दिन राम–लक्ष्मण के स्वरूप यहाँ पूजा अर्चना के पश्चात् रावण वध लीला के लिए जाते हैं। पुराणों के उल्लेख के अनुसार द्वापर युग में भी शक्ति उपासना का प्रचलन था और यह देवी नन्द बाबा की कुल देवी थी।

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    मानसी गंगा, गोवर्धन

    मानसी गंगा गोवर्धन के बीच में है। परिक्रमा करने में दायीं और पड़ती है और पूंछरी से लौटने पर भी बायीं और इसके दर्शन होते हैं। श्रीकृष्ण के मन में गंगाजी का विचार आने से गंगा जी मानसी रूप में गिरिराज की तलहटी में कार्तिक मास की अमावस्या को प्रकट हुई। वह श्री भगवान के चरणों से उत्पन्न हुई है और इसकी उत्पत्ति श्री भगवान के मन से है। मानसी गंगा के तटों को पत्थरों से सीढ़ियों सहित बनवाने का श्रेय जयपुर के राजा श्री मानसिंह के पिता राजा भगवानदास को है।

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    नंदराय मंदिर, नंदगांव

    श्रीराधारानी की जन्मस्थली बरसाना के उत्तर में 7 कि.मी. की दूरी पर उत्तर दिशा में नंदगांव स्थित है। नंदराय के वर्तमान मंदिर का निर्माण वि.सं. 1800 में भरतपुर के सिनसिनवार जाट सरदार रूपसिंह ने कराया था। यह मंदिर कृष्ण के पिता नंदराय को समर्पित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी पर थोड़ी सी चढ़ाई करनी पड़ती है। इसी नन्दीश्वर पर्वत पर कृष्ण भगवान व उनके परिवार से संबंधित अनेक दर्शनीय स्थल भी हैं जिनमें नरसिंह, गोपीनाथ, नृत्य गोपाल, गिरधारी, नंदनंदन और माता यशोदा के मंदिर हैं।

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    राधा दामोदर मंदिर, वृन्दावन

    राधा दामोदर मंदिर की स्थापना रूप गोस्वामी के शिष्य जीव गोस्वामी ने संवत् 1599 माघ शुक्ल दशमी तिथि को की थी। यहीं पर श्री रूप गोस्वामी ने श्रीभक्तिरसामृतसिन्धु, उज्ज्वलनीलमणि एवं अन्यान्य भक्ति ग्रन्थों का संकलन किया। रूप गोस्वामी पाद द्वारा प्रदत्त जीव गोस्वामी पाद के सेव्य श्रीराधा दामोदरजी की प्रतिष्ठा संवत 1599 विक्रमी सन् 1543 माघ शुक्ल दशमी में की गई। इस मंदिर में श्रीराधा छैल चिकनियांजी के श्रीविग्रह भी विराजमान हैं।

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    श्रीराधा गोपीनाथ मंदिर, वृन्दावन

    यह नया मंदिर 1819 ईसवी में बनाया गया था। गोपीनाथजी मन्दिर वृंदावन में स्थित एक वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है। यमुना तट पर मनोहर वंशीवट के नीचे श्रीमधु पंडित द्वारा श्री गोपीनाथ जी प्रकट हुए। यह मंदिर श्रीराधारमण मंदिर के पास है। आक्रानता के उत्पात की आशंका से श्रीराधागोपीनाथ जी जयपुर में स्थानांतरित होने के पश्चात श्री नंदकुमार वसु ने प्राचीन मंदिर के समीप श्रीराधा गोपीनाथ मंदिर का नवीन मंदिर प्रतिष्ठित कर प्रतिभू विग्रह की स्थापना की।

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    राधाकुण्ड, गोवर्धन

    मथुरा से 21 कि.मी. पश्चिम में गोवर्धन तथा गोवर्धन से 5 कि.मी. उत्तर में राधाकुण्ड स्थित है। श्री गोवर्धन पर्वत के उत्तरी छोर पर राधाकुंड-श्यामकुंड के दर्शन होते हैं। प्रतिवर्ष यहां अहोई अष्टमी को विशाल मेला लगता है और संतान प्राप्ति की इच्छा वाले दंपत्ति अर्धरात्रि में युगल कुंड में स्नान करके पेठे के फल को लाल कपड़े में बांधकर गुप्तदान कर मनौती मांगते हैं। श्रीराधा जी ने अपने कंगन से तथा उनकी सखियों ने भी अपने कंगन से एक गड्ढा खोदकर राधाकुण्ड की स्थापना की।

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    श्रीराधारमण मंदिर, वृन्दावन

    श्रीराधारमण जी का मंदिर श्री वृंदावन के श्री गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय का सुप्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण लखनऊ के सेठ कुंदनलाल द्वारा 1542 ई. में वैशाख पूर्णिमा को कराया गया। इस मंदिर में निर्मित चक्राकार संगमरमरी खंभों की कतार दर्शनीय है। श्रीराधारमण मंदिर में श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी द्वारा सेवित श्रीविग्रह है। श्रीराधारमण विग्रह की पीठ शालग्राम शिला जैसी दिखती है। अर्थात पीछे से दर्शन करने में शालग्राम शिला जैसे ही लगते हैं।

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    श्रीराधारानी मंदिर, बरसाना

    श्रीकृष्ण प्रिया राधारानी का भव्य मंदिर भानुगढ़ नामक ऊँची  चोटी पर स्थित है जिसमें संप्रति श्रीलाड़ली जी विद्यमान हैं। माना जाता है कि राधा रानी मंदिर मूल रूप से लगभग 5000 साल पहले राजा वज्रनाभ (कृष्ण के परपोते) द्वारा स्थापित किया गया था। मंदिर खंडहर में बदल गया था तब प्रतीक नारायण भट्ट द्वारा फिर से इसे खोजा गया और 1675 ईसवी में राजा वीर सिंह द्वारा नया मंदिर बनाया गया था। बाद में, मंदिर की वर्तमान संरचना का निर्माण नारायण भट्ट ने राजा टोडरमल की मदद से किया था।

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    श्रीराधाश्याम सुन्दर मंदिर, वृन्दावन

    गौड़ीय वैष्णव सप्त देवालयों में श्रीराधाश्याम सुंदर जी का मंदिर अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं। श्री श्यामानंद प्रभु ने श्रीश्यामसुंदर जी को प्रकट किया था। श्रीराधाजी का नुपूर सेवाकुंज के निकट एक स्थान पर श्री श्यामानंद प्रभु को मिला था। श्रीश्यामानंद प्रभु द्वारा सेवित श्रीविग्रह आज भी वृन्दावन में सेवित है। मंदिर में ठा. राधाश्यामसुंदर मुख्य सिंहासन पर विराजमान हैं। मुख्य सिंहासन की बाईं ओर श्रीराधारानी प्रतिष्ठित हैं। मुख्य सिंहासन के दायीं ओर राधा कुंजबिहारी की मनमोहनी विग्रह सेवित है।

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    श्री राधा वल्लभ मंदिर, वृन्दावन

    श्री हित हरिवंश गोस्वामी जी के सेव्य श्री राधा वल्लभ लाल के गोस्वामियों द्वारा इस मंदिर का निर्माण सन् 1584 में गोस्वामी वनचंद जी के एक शिष्य देवबंद निवासी श्री सुंदर दास खजांची द्वारा करवाया गया था। इनको आज्ञा दी श्री हित व्रजचन्द महाप्रभु ने। संवत 1726 में औरंगजेब ने इस मंदिर को अपनी क्रूरता का शिकार बनाया। श्री राधा वल्लभ जी अन्यत्र जाने तक इसमें विराजमान रहे। पुन: वृंदावन लौटने पर वे नए मंदिर में सन 1842 से प्रतिष्ठित हुए। इसमें श्री हित हरिवंश जी के चित्रपट की सेवा है।

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    महाकवि रसखान की समाधि, महाबन गोकुल

    महाकवि रसखान का जन्म 1548 ई. में अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था। रसखान का असली नाम सैयद इब्राहिम था। भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होकर रसखान शांति की तलाश में मथुरा-वृंदावन पहुंच गए। रसखान ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों को गोकुल में जिया है और सन् 1628 में यहीं पर अपना शरीर त्याग दिया। रसखान नाम का उच्चारण रस की खान से होता है। श्रीकृष्ण के परम भक्तों में से एक मुस्लिम कवि रसखान हैं।  रसखान के नाम में भक्ति और श्रृंगार रस दोनों की प्रधानता मिलती है। 

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    संकेत बिहारी मंदिर, नंदगांव

    नंदगांव से तकरीबन 10 किलोमीटर आगे बरसाना की तरफ चलें तो संकेत वन का मार्ग है। यहां संकेतबिहारी जी का मुगलकालीन प्राचीन मंदिर आज भी दर्शनीय है।  वस्तुतः सखियों द्वारा किये जाने वाले संकेतों के कारण ही इस स्थान का नाम संकेत पड़ गया। यहां राधा और कृष्ण की विवाह वेदी पत्थर की शिला पर अंकित है। यहाँ भगवान श्री कृष्ण और राधा आकर झूला करते थे। जब भगवान कृष्ण और राधा का विवाह हुआ था तो ब्रह्मा के द्वारा इस विवाहवेदी शिला पर उनके विवाह का वर्णन किया गया है।

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    शाहजी मंदिर, वृन्दावन

    लखनऊ निवासी सेठ कुन्दनलाल शाह ने 1835 ई. में मन्दिर का निर्माण प्रारम्भ करवाया था। सफ़ेद मकराना पत्थरों के द्वारा बहुत धन लगाकर इस भव्य मन्दिर का निर्माण कराया गया था। यह मंदिर अपनी खूबसूरती और विशिष्ट वास्तुशिल्प के लिए भी जाना जाता है। इस मंदिर की बनावट महल की तरह है और इसकी संरचना व नक्काशी बेजोड़ है। देखा जाए तो इसकी संरचना  में राजस्थानी, इतावली और बेलीगन कला का मिश्रण है। पत्थर में जड़ाऊ काम के चित्र भी यहाँ अद्भुत हैं। बसन्ती कमरा भी है।

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    राधा गोकुलानंद मंदिर, वृन्दावन

    इस मंदिर की स्थापना लोकनाथ गोस्वामी ने की थी,  श्री लोकनाथ गोस्वामी ने छत्रवन के पास उमराव-गाँव में किशोरी-कुंड में श्री राधा-विनोद के देवता को पाया और वहाँ उनकी सेवा की। बाद में, रूप, सनातन और अन्य गोस्वामी के अनुरोध पर, वह अपने पूज्य श्री राधा-विनोद को वृंदावन ले आए और श्री राधा-रमन के मंदिर के पास उनकी पूजा करने लगे। हालाँकि वह छह गोस्वामियों में से एक नहीं थे, लेकिन वे प्रसिद्ध गौड़ीय गोस्वामियों में से एक थे और उनका मंदिर प्रसिद्ध ‘सात गोस्वामी मंदिरों’ में शामिल है।

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    श्री रंगनाथ मंदिर, वृन्दावन

    'श्री सम्प्रदाय' के संस्थापक रामानुजाचार्य के विष्णु-स्वरूप भगवान रंगनाथ या रंगजी के नाम से 'रंगजी का मन्दिर' सेठ लखमीचन्द के भाई सेठ गोविन्ददास और राधाकृष्ण दास द्वारा निर्मित कराया गया था।  वि.सं. 1908, सन् 1851 में इस मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ था। उनके महान गुरु संस्कृत के उद्भट आचार्य स्वामी रंगाचार्य द्वारा दिये गये मद्रास के रंगनाथ मन्दिर की शैली के मानचित्र के आधार पर यह बना था। उस समय इसकी लागत पैंतालीस लाख रुपये आई थी।
     

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    श्रीनाथ जी मंदिर, गोवर्धन

    इस भव्य मंदिर का निर्माण संवत् 1552 में श्रावण शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था। संवत 1576 में बल्लभाचार्य जी के द्वारा इस मंदिर में प्रारंभ की गई सेवा व्यवस्था वल्लभ सम्प्रदाय के अनुसार होती है। माना जाता है कि श्रीनाथ जी नित्यप्रति सायं को नाथद्वारा से आकर यहीं शयन करते हैं। औरंगजेब के आक्रमणों से वि.सं. 1726 में एक भक्त महिला गंगाबाई भगवान श्रीनाथ जी को रथ में बैठाकर राजा राजसिंह की सेवा सुरक्षा में लेकर पहुंची जहां आज भी श्रीनाथ जी नाथद्वारा में विराजे हैं। 

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    टटिया स्थान, वृंदावन

    श्री रंग जी मंदिर के दाहिने हाथ यमुना जी के जाने वाली पक्की सड़क के आखिर में ही यह रमणीय टटिया स्थान है। हरिदास सम्प्रदाय के आठ आचार्य हैं। सातवें आचार्य, स्वामी ललित किशोरी देव जी ने 1758 और 1823 के बीच इस धरती पर एक निर्जन वृक्ष के नीचे निवास किया, ताकि एकांत में ध्यान किया जा सके। उन्होंने बांस के डंडे का इस्तेमाल कर पूरे इलाके को घेर लिया। स्थानीय बोली में बाँस की छड़ियों को "टटिया" कहा जाता है। इस तरह इस स्थान का नाम टटिया स्थान पड़ा।

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    सेवा कुंज, वृंदावन

    सेवा कुंज, जिसे निकुंज वन के नाम से भी जाना जाता है, वृंदावन में स्थित है। इस स्थान को सेवा कुंज के नाम से जाना जाता है क्योंकि भगवान कृष्ण राधा की सेवा करते थे और उन्हें रास लीला के लिए तैयार होने में मदद करते थे। स्वामी हित हरिवंश जी ने 1590 में इस स्थान की खोज की थी। उनकी मान्यता के अनुसार यहीं पर श्री राधा कृष्ण हर रात सखियों के साथ रास करते हैं। कुंज की दीवारों में संगमरमर की टाइलें हैं, जिन पर राधासुधनधि के छंद उकेरे गए हैं।
     

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    निधिवन, वृन्दावन

    निधिवन वृन्दावन का प्राचीन स्थल है एवं स्वामी श्री हरिदास जी की साधना स्थली है। स्वामी हरिदास जी महाराज की साधनास्थली निधिवनराज में कई संत-साधकों की समाधियां अद्यतन विद्यमान है। यहाँ लगभग 1500 ई. मे स्वामी श्री हरिदास जी का आगमन हुआ था, जिनका प्रकाट्य वृंदावन के निकट राजपुर मे अपने ननिहाल मे हुआ था। इनके पिता श्री आशुधीर थे। यही विठ्ठल विपुल जी के निमित्त स्वामी जी ने बाँके बिहारी जी का स्वरूप उद्घाटित किया था।

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    राधा रानी मंदिर, रावल ग्राम

    बृषभानु एवं कीर्तिदा की पुत्री के रूप में राधा रानी ने आज से 5000 वर्ष से भी अधिक पूर्व मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल ग्राम में जन्म लिया था। यहाँ पर राधारानी का बहुत प्राचीन मंदिर है जिसकी बहुत मान्यता है। यह श्रीराधारानी की परम पावनी जन्मस्थली के रूप में विख्यात है। रावल मथुरा से यमुना पार बलदेव जाने वाले पक्के मार्ग पर 10 कि.मी. पर लगभग डेढ़ कि.मी. के सहायक मार्ग से जुड़ा है।

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