संग्रहालय में विभिन्न विषयों, जैसे- साहित्य, संगीत, नृत्य, आयुर्विज्ञान, विज्ञान एवं खगोलशास्त्र पर विभिन्न प्रकार की पाण्डुलिपियाँ हैं। इनमें लेखन सामग्री के रूप में बंसपत्र (बांस की पत्तियाँ), तालपत्र (ताड़ की पत्तियाँ) तथा कागज का उपयोग किया गया है। संग्रहालय में चित्र दीर्घा भी है, जहाँ संग्रहालय वीथिका को देखा जा सकता है।
तालपत्रों पर लिखित सामग्री बंगाल व उड़ीसा की है, जबकि कागज पर लिखित अधिकांश पाण्डुलिपियाँ ब्रज क्षेत्र की हैं। स्वर्ण इंक से लिखी गई पवित्र कुरान की आयतें इस्लामी सुलेख (किताबत) की दुर्लभ कृतियाँ हैं। प्रदर्शित कृतियों में विभिन्न युगों के महान संस्कृत कवियों की रचनाएँ शामिल हैं। उल्लेखनीय रूप में जैन पाण्डुलिपियाँ भी प्रदर्शित की गई हैं। ब्रज क्षेत्र १४वीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही ब्रजभाषा का केन्द्र रहा है।
अतः संतों की रचनाएँ एवं उपदेश ब्रजभाषा में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त सूरदास रचित 'सूरसागर' तथा बिहारी रचित 'बिहारी सतसई' जैसे काव्य भी उल्लेखनीय हैं। 'सूरसागर' का उर्दू में लिप्यांतरण एक दुर्लभ पाण्डुलिपि है। विभिन्न राज्यों के देशी शासकों द्वारा मन्दिरों के निर्माण तथा देख-रेख हेतु समय-समय पर भूमि दान की गई। इस संदर्भ में मुसलमान शासकों विशेषतः अकबर द्वारा जारी किये गए फरमान अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यहाँ ब्रज की संस्कृति की झलक भी प्रस्तुत की गई है, जिसमें देवी-देवताओं की प्रतिमायें व उनकी सज्जा महत्वपूर्ण है। आभूषणों में मुकुट, चन्द्रिका, कुण्डल तथा पूजा इत्यादि में इस्तेमाल होने वाले पात्र प्रदर्शित वस्तुओं में विशेष रूप से उल्लेखलीय हैं।
प्रमुख त्योहारों के अवसर पर बनाई जाने वाली चित्रकला की भी आकर्षक प्रस्तुति की गई है। पितृपक्ष के अवसर पर शुष्क रंगों (जिनमें पुष्प भी होते हैं), गाय के गोबर तथा पत्थर के बुरादे से बनाये जाने वाले चित्र सांझी कहलाते हैं। चित्रकला की इस शैली में कला एवं आध्यात्म के बीच सामंजस्य दृष्टिगोचर होता है।

संग्रहालय दीर्घा का दृश्य
'वृन्दावन अनुसंधान संस्थान' की गतिविधियाँ एक फलक पर दर्शाई जाती हैं। संस्थान का उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना एवं उसका संरक्षण है। अधिकांश लघुचित्रों का संग्रह काँगड़ा, चित्तौड़ व मुग़ल शैली से संबंधित है तथा उनकी विषयवस्तु मुख्यत: धार्मिक अथवा ऐतिहासिक है। अनेक पेंटिंग हाल ही में प्राप्त हुई हैं। सैकड़ों पुराने डाक टिकट, पोस्टकार्ड, लिफाफे तथा हिन्दी, उर्दू व बांग्ला के पत्र भी संग्रहीत हैं, जो विशेषतः १८७०-१९३० की अवधि के हैं। इस प्रकार का पत्राचार ऐतिहासिक एवं फिलाटेलिक (डाक टिकट संग्रह) महत्व का है। इससे न केवल पाण्डुलिपियाँ के मूल स्थान एवं राजकीय परिवारों का इतिहास पता चलता है।
भारत में मुग़ल व ब्रिटिश युग के इतिहास में रूचि रखने वालों के लिये यहाँ १६वीं से १९वीं शताब्दी तक के अनेक सिक्के संग्रहीत हैं। एक अनुमान के अनुसार एक सिक्का कुषाण (दूसरी शताब्दी) का तथा दूसरा सिक्का इण्डो-यूनानी (दूसरी शताब्दी ई. पूर्व) का है।
ब्रज संस्कृति संग्रहालय
संग्रहालय में साहित्य, संगीत, नृत्य, चिकित्सा, विज्ञान और ज्योतिष जैसे कई विषयों को कवर करने वाली विभिन्न प्रकार की पांडुलिपियाँ हैं। लेखन सामग्री में बंसापत्र (बाँस की पत्तियाँ), तलपात्र (बेर के पत्ते) और कागज़ (कागज) का उपयोग किया गया है। तालपत्र पर लिखी गई रचनाएं बंगाल और उड़ीसा की हैं, जबकि कागजी पांडुलिपियां ज्यादातर ब्रज क्षेत्र से हैं। सोने की स्याही से लिपटी कुरान की पवित्र आयतें इस्लामी सुलेख का एक दुर्लभ कार्य है।
विभिन्न युगों में महान संस्कृत कवियों की प्रदर्शित कृतियों को खंगाला गया। उल्लेखनीय जैन पांडुलिपियाँ भी प्रदर्शित की गई हैं। ब्रज क्षेत्र 14 वीं शताब्दी की शुरुआत से ही ब्रज भाषा का देश रहा है, इसलिए संतों के कार्य और उनके सिद्धांत ब्रज भाषा में पाए जाते हैं। इसके बावजूद सूरदास द्वारा सूरसागर, बिहारी सतसई जैसे कवियों के महत्वपूर्ण कार्यों को भी देखा जाना चाहिए। सूरसागर का उर्दू प्रतिलेखन एक दुर्लभ पांडुलिपि है।
विभिन्न राज्यों के मूल शासकों ने मंदिरों के निर्माण के लिए भूमि अनुदान से संबंधित और समय-समय पर सहज कार्य करने से संबंधित आदेश जारी किए। इस संदर्भ में मुस्लिम उपदेश महत्वपूर्ण हैं, विशेषकर अकबर महान द्वारा जारी फरमान।
ब्रज संस्कृति के चरणों की कुछ झलकियाँ यहाँ भी दिखाई देती हैं, जिनमें देवताओं और उनके शैय्याओं की प्रतीकात्मक विशेषताएं महत्वपूर्ण हैं। अलंकृतों की श्रेणी में मकुता (सिर-आभूषण), चंद्रिका (हार) कुंडला (कान के छल्ले), और कर्मकांडों के साथ-साथ पूजा में प्रयुक्त सामग्री, प्रदर्शन की मुख्य विशेषताएं हैं।
महत्वपूर्ण त्योहारों के अवसर पर, बर्लिंटार में पितृपक्ष पर लगाए गए चित्रों में फूलों, गाय-गोबर और पत्थर के पाउडर के सूखे रंगों को सांझी के रूप में जाना जाता है। चित्रकला के इस रूप में, कला और आध्यात्मिकता के बीच एक सामंजस्य दिखाई देता है। अंत में, वृंदावन अनुसंधान संस्थान द्वारा संचालित गतिविधियों को एक पैनल पर पेश किया जाता है, जो संस्थान द्वारा संचालित गतिविधियों के प्रदर्शन पर केंद्रित होता है। इस संस्थान का उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए जागरूकता और सम्मान की भावना का आह्वान करना है।
संग्रह में अधिकांश लघुचित्र कांगड़ा, चितोर और मुगल स्कूल ऑफ आर्ट के हैं, और मुख्य रूप से विषय में धार्मिक या ऐतिहासिक हैं। हाल ही में कई दुर्लभ और मूल्यवान चित्रों का अधिग्रहण किया गया है। हिंदी, उर्दू और बंगाली में सैकड़ों पुराने स्टैम्प, पोस्टकार्ड, लिफाफे और पत्र हैं, खासकर 1870 से 1930 की अवधि तक। ऐसे पत्राचार ऐतिहासिक और दार्शनिक रुचि के हैं क्योंकि यह केवल पांडुलिपियों के सिद्ध होने से संबंधित सामयिक विवरणों की आपूर्ति नहीं करता है और पुरोहित परिवारों का इतिहास, लेकिन भारत में डाक सेवाओं पर भी दिलचस्प बदलाव आया है।
16 वीं से 19 वीं शताब्दी के कई सिक्के भारत के मुगल या शुरुआती ब्रिटिश काल के इतिहासकारों के लिए संग्रह की रुचि को बढ़ाते हैं। एक सिक्के का आकलन कुसाना काल (दूसरी शताब्दी ए.डी. और दूसरा इंडो-ग्रीक काल दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) से किया गया है।
ब्रज में आने वाले श्रद्धालु पर्यटकों का ब्रज संस्कृति विविध पक्षों से साक्षात्कार कराना ब्रज संस्कृति संग्रहालय का प्रमुख उद्देश्य है। यहाँ 05 वीथिकाओं में संयोजित वैविध्यपूर्ण सामग्री के प्रस्तुतिकरण से ब्रज संस्कृति के विस्तार को एक दृष्टि समझा जा सकता है-
- पाण्डुलिपि वीथिका –
संग्रहालय की इस वीथिका में संस्थान संग्रह की 30,000 पाण्डुलिपियों से विषय केन्द्रित परिकल्पना के अनुसार महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का प्रस्तुतिकरण किया जाता है। यहाँ अवसर विशेष की दृष्टि से पाण्डुलिपियों को संयोजित करने के साथ ही सुधीजनों हेतु निम्नानुसार दृष्टि के साथ पाण्डुलिपियाँ प्रदर्शित की जातीं हैं।
- लिपिगत
- भाषागत वैशिष्ट्य
- सचित्र पाण्डुलिपि
- विषय-वैविध्य को दर्शाने वालीं पाण्डुलिपियाँ
- चित्र वीथिका
ब्रज संस्कृति संग्रहालय में संरक्षित पुरा-चित्रों को विषय वर्गीकरण की दृष्टि के साथ इस वीथिका में प्रदर्शित किया जाता है। ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक सन्दर्भों का प्रस्तुतिकरण करने वाले चित्र हैं। विभिन्न लघु चित्र शैलियों का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेकों चित्र यहाँ निम्नानुसार सुलभ हैं-
- मूर्त्ति वीथिका
ब्रज संस्कृति संग्रहालय में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त मूर्त्तियों का संग्रह देखते ही बनता है। यहाँ मथुरा प्रतिहार एवं चंदेल शैली में निर्मित 263 मूर्तियाँ विद्यमान हैं। इस वीथिका के अंतर्गत दीवार पर ब्रज क्षेत्र के विभिन्न दर्शनीय एवं ऐतिहासिक स्थलों के छायाचित्र तथा हस्तलिखित चित्रों को जिज्ञासुओं के लाभार्थ प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय में दर्शित पाषाण, धातु, मिट्टी एवं काष्ठ आदि से अलग-अलग कालक्रमों में निर्मित इन मूर्त्तियों में कुछ प्रमुखतः निम्नानुसार हैं-
- बुद्ध
- शिव
- हनुमान
- मातृदेवियां
- वराह अवतार
- वेणु गोपाल
- जैन तीर्थांकर
- अन्य पुरातात्त्विक अवशेष
- ब्रज संस्कृति वीथिका v3v
संग्रहालय की चतुर्थ वीथिका के रूप में तैयार की गई ब्रज संस्कृति वीथिका, ब्रज की लोक एवं मंदिर संस्कृति पर आधारित है।
- ब्रज की मंदिर संस्कृति
- अष्टछाप कवि
- वृन्दावनी रसोपासना के साधक हरित्रयी
(गो. श्रीहित हरिवंश महाप्रभु, स्वामी श्रीहरिदास एवं संत प्रवर हरिराम व्यास)
- षड् गोस्वामी
(श्री रूप गोस्वामी, श्री जीव गोस्वामी, श्री सनातन गोस्वामी, श्री रघुनाथ गोस्वामी, श्री गोपाल भट्ट, श्री रघुनाथ भट्ट)
- निम्बार्काचार्य श्री भट्ट जी की दृष्टि में वृन्दावन
- हरिदासी सम्प्रदाय
- भारतविद्या [Indology] में ब्रज के योगदान को दर्शाती पाण्डुलिपियों के सृजन एवं विस्तार की परम्परा
- ब्रज लोक संस्कृति
- साँझी परम्परा
- लट्ठे का मेला
- बरसाने की होली
- दाऊजी का हुरंगा
- कंस वध मेला
- चरकुला नृत्य
- समाज गायन
- रथ का मेला
- ब्रजनिधि वीथिका
ब्रज संस्कृति की समृद्ध परंपरा में यहां प्रयुक्त होने वाले प्राचीन वाद्ययंत्र, संतों के उपयोग की वस्तुयें तथा देवालयी संस्कृति से संबंधित पूजा उपकरणों को संजोये संस्थान की यह पांचवीं वीथिका ब्रज की लोक एवं मंदिर संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। यहां प्रदर्शित कलावस्तुयें निम्नानुसार हैं-
- ब्रज के प्राचीन वाद्ययंत्र - 11
- साधु-संतों के प्रयोग की जाने वाली वस्तुयें - 22
- धातु की मूर्ति - 15
- हाथीदाँत कलाकृति - 12
- पूजन सामग्री - 10
- अन्य सामग्री - 34
- मृण्मूर्ति - 30
- पाषाण मूर्ति - 260
- सिक्के एवं पदक - 344
- म्यूरल्स - 17
- काष्ठ कलाकृति - 3
- वस्त्र - 4