संरक्षण विभाग

 

 

अधिकांश पाण्डुलिपियाँ नष्ट, जली हुई अथवा कीड़े लगी हुई प्राप्त हुईं। संस्थान ने उनके संरक्षण व उन्हें शोध कार्यों हेतु उपलब्ध कराने के लिये एक प्रयोगशला स्थापित की है। इन पाण्डुलिपियों के संरक्षण हेतु विशेषज्ञ फ्यूमीगेशन, लैमिनेशन, जिल्दबंदी इत्यादि में आधुनिक वैज्ञानिक तरीके अपनाते हैं। इस विभाग द्वारा जनसाधारण एवं पाण्डुलिपि संग्रहकर्ताओं में पाण्डुलिपियों के संरक्षण के प्रति चेतना जागृत करने के उद्देश्य से कार्यशालाओं एवं संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। विशेषज्ञों को संरक्षण की नवीनतम तकनीकों की जानकारी उपलब्ध कराने के लिये अनेक पाठ्‌यक्रम भी चलाये जाते हैं। सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश के लिये यह संस्थान पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र के रूप में राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन (एन.एम.एम.) द्वारा अनुमोदित है।

निवारण

वृन्दावन अनुसंधान संस्थान मूलतः पाण्डुलिपि संग्रहालय एवं संरक्षण केन्द्र है। यहाँ संरक्षण की आधुनिक तकनीक अपनाई जाती है तथा माइक्रोफिल्में भी तैयार की जाती हैं। संस्थान में महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों के संरक्षण हेतु अत्याधुनिक प्रयोगशाला है तथा यहाँ महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों पर शोध व उनका प्रकाशन होता है ताकि भारतीय विशेषतः बृज की संस्कृति की रक्षा की जा सके एवं उसके प्रति लोगों के ज्ञानवर्धन के अतिरिक्त रूचि भी जागृत हो। संस्थान के उद्देश्यों के विभिन्न पक्षों पर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सेमीनार, गोष्ठियाँ, कार्यशालायें आदि आयोजित की जाती हैं।

उपचार

वृन्दावन अनुसंधान संस्थान जनसामान्य, पाण्डुलिपि संग्रहकर्ताओं, पुस्तकालय विज्ञान के विद्वानों एवं अन्य लोगों में पाण्डुलिपियों के संरक्षण के व्यावहारिक ज्ञान को प्रोत्साहन देना चाहता है। संस्थान ने विगत वर्ष से पाण्डुलिपि संरक्षण का एक वर्षीय कोर्स प्रारम्भ किया है। यह कोर्स डा० भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा से पाण्डुलिपि विज्ञान एवं पाण्डुलिपि संरक्षण में एक वर्षीय परास्नातक डिप्लोमा हेतु मान्यता प्राप्त है। प्रास्पेक्टस तथा फार्म साईट पर भी उपलब्ध है।

संरक्षण अनुभाग द्वारा संस्थान में विद्यमान पाण्डुलिपियों तथा कलाकृतियों का संरक्षण करने के साथ ही संस्थान को समय-समय पर प्राप्त होने वाली ग्रंथ सम्पदा की मरम्मत तथा वैज्ञानिक प्रविधि से संरक्षण आदि का कार्य किया जाता है। इसी के साथ संस्थान के प्रकल्प ब्रज संस्कृति संग्रहालय तथा पाण्डुलिपि ग्रंथागार में चक्रित क्रम से रसायन का छिड़काव तथा प्राचीन चित्र, मूर्तियों एवं अन्य विविध प्रकार की सामग्री का संरक्षण, अनुभाग की प्रमुख गतिविधियों में सम्मिलित है।

इस क्रम में यहाँ काग़ज़, ताड़पत्र, भोजपत्र, बाँसपत्र एवं केले की छाल पर लिखित पाण्डुलिपियों का निम्नलिखित प्रविधि के अनुसार संरक्षण कार्य किया जाता है-

प्राथमिक संरक्षण –

  1. धूमीकरण
  2. पृष्ठीकरण 
  3. पटलीकरण 
  4. साफ-सफाई 
  5. पैकिंग
  6. रैपिंग 

 

प्रयोगात्मक संरक्षण -

  1. स्याही की जाँच
  2. स्याही का स्थायीकरण
  3. अनम्लीकरण
  4. वाँछित मरम्मत
  5. लेमिनेशन