शोध

वीआरआई विद्वानों को अनुसंधान सुविधाएं प्रदान करता है। इस संस्थान से शोध कार्य करने के लिए कई विद्वानों को हिंदी और संस्कृत में पीएचडी की उपाधि से सम्मानित किया गया है। वीआरआई ने कई शोध पुस्तकें प्रकाशित की हैं। संस्थान ने कई बुलेटिन और महत्वपूर्ण संस्करण प्रकाशित किए हैं। 5 खंडों में संस्कृत पांडुलिपियों की सूची, 2 खंडों में हिंदी, पंजाबी, बंगला और प्रत्येक खंड में माइक्रोफिल्मेड पांडुलिपियों को भी हमारे पुस्तकालय के संग्रह से संस्थान द्वारा प्रकाशित किया गया है। अन्य को प्रकाशित किया जाना है। संस्थान एक साहित्यिक और सांस्कृतिक त्रैमासिक पत्रिका "राज सेला भी प्रकाशित करता है। हमारे कार्य। वीआरआई ब्रज संस्कृति को बढ़ावा देने और बचाने के लिए विभिन्न कार्यों का आयोजन करता है, सांस्कृतिक कार्यक्रम, सेमिनार, प्रदर्शनियां, कार्यशालाएं आदि।

उपलब्धियां

इस विभाग के अन्तर्गत संस्थान में आने वाले शोध अध्येताओं को शोध सामग्री उपलब्ध कराने के साथ ही यहाँ संरक्षित पाण्डुलिपियों/दस्तावेजों पर केन्द्रित शोध एवं प्रकाशन कार्य किये जाते हैं। विभाग द्वारा अब तक ब्रज संस्कृति से जुड़े विभिन्न विषयों पर 29 शोधपरक विषयों पर पुस्तकों का प्रकाशन कराया जा चुका हैं। जिनमें कई दुर्लभ पाण्डुलिपियों का संपादन भी सम्मिलित हैं। शोध अध्येताओं की संस्थान के हस्तलिखित ग्रन्थागार तक सहजतापूर्वक पहुँच बनाने के लिए विभाग द्वारा संस्कृत, हिन्दी, बंगला और पंजाबी पाण्डुलिपियों के कैटलाॅग भी कई खण्डों में प्रकाशित कराये गये हैं। शोधार्थियों की सुविधार्थ, अधिकाधिक पाण्डुलिपियों तक उनकी पहुँच बनाने के निमित्त संस्थान के द्वारा विभिन्न निजी संग्रहों में रखी पाण्डुलिपियों की डिजिटाइजेशन कराने के साथ ही इनका कैटलाॅग भी प्रकाशित किया गया हैं ताकि अध्येता को संस्थान में एक ही जगह अधिक से अधिक शोध सन्दर्भ प्राप्त हो सकें। ब्रज संस्कृति पर केन्द्रित त्रैमासिक शोध पत्रिका ‘ब्रज सलिला’ का प्रकाशन भी विभाग द्वारा निरंतर किया जाता है। गौड़ीय वैष्णव संस्कृति से अभिप्रेत दुर्लभ ग्रंथ रत्नों की विद्यमानता के चलते संस्थान के हस्तलिखित ग्रंथागार का अपना महत्व है। चैतन्य परंपरा के प्रमुख साधक रूप, सनातन एवं जीव गोस्वामी के हस्तलेख हों या बादशाह अकबर का इनके नाम फरमान और इसी के साथ अनेक गौड़ीय साधकों की दुर्लभ पांडुलिपियांऋ सभी कुछ चैतन्य संस्कृति से जुड़े दुर्लभ पक्षों का महत्व दर्शाने वाले हैं। इसी दृष्टिगत वर्तमान में संस्थान चैतन्य महाप्रभु पर एकाग्र वृहद परियोजना तैयार करने में संलग्न है। जिससे संस्थान के हस्तलिखित ग्रंथागार का महत्व अध्येताओं के साथ आमजन के समक्ष उपस्थित तो हो ही, साथ ही चैतन्य संस्कृति से जुड़े नये शोध सन्दर्भ भी अध्येताओं के साथ साझा हो सकें।

संस्कृति के अनालोचित पक्षों पर सतत अनुसंधान तथा ब्रज संस्कृति के विविधतापरक अध्ययन पर केन्द्रित अकादमिक गतिविधियों का संचालन इस अनुभाग की प्रमुख गतिविधियों में से एक है। विगत 05 दशकों में संस्कृति के बहुविधि शोध अध्ययन तथा प्रकाशन की दिशा में अनुभाग ने ब्रज प्रेमी अध्येताओं तथा सुधीजनों के लिए एक दृष्टि विकसित की है। इस शोधपरक दृष्टि के साथ संस्थान संग्रह की 30,000 पांडुलिपियों, अन्य दुर्लभ अभिलेखीय सामग्री तथा वाचिक परंपरा में विद्यमान संदर्भों को विज्ञजनों के मध्य साझा करने के क्रम में अनुभाग द्वारा निम्नानुसार शोध गतिविधियां संचालित की जाती हैं।

1.      शोध परियोजनायें [Research Project]

इण्डोलॉजी के विभिन्न उपांगों, विश्वविद्यालयी दृष्टि तथा संस्कृति अध्ययन के अन्तर्गत नव फलित पक्षों के सापेक्ष संस्थान संग्रह की पाण्डुलिपि सम्पदा तथा ब्रज की लोक एवं देवालयी परम्पराओं के समन्वय भाव से अनुभाग द्वारा समय-समय पर वृहद एवं लघु शोध परियोजनायें संचालित की जाती हैं। संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से चार खंडों में ब्रज संस्कृति विश्वकोश परियोजना के समापनोपरान्त संस्थान  ‘युग-युगीन श्रीकृष्ण : व्याप्ति और सन्दर्भ’  शीर्षक पंचवर्षीय शोध परियोजना पर कार्य कर रहा है।

वर्ष 2020-21 में अनुभाग द्वारा अपनी विभिन्न शोध गतिविधियों के क्रम में वृंदावन-कुंभ: 2021 शोध परियोजना [Vrindavan Kumbha Research Project]  के अंतर्गत सेमीनार, व्याख्यान तथा प्रदर्शनी आदि का आयोजन किया जायेगा।

2.  सर्वेक्षण योजना [Survey Plan]

ब्रज संस्कृति के अप्रसारित पक्षों, इससे जुड़ी लिखित एवं वाचिक परंपरा तथा इसके गौरवशाली सांस्कृतिक परिदृश्य को दर्शाने वाली विविधताओं के अभिलेखन की दिशा में सतत सर्वेक्षण द्वारा संदर्भों के संकलन तथा प्रकाशनों से शोध अध्येताओं और संस्कृति प्रेमी विज्ञजनों को लाभान्वित करना अनुभाग की इस योजना का मुख्य उद्देश्य है। विगत समय में संस्थान द्वारा निम्नानुसार विभिन्न विषयों पर सर्वेक्षण योजना के अंतर्गत कार्य किये गये हैं-

                    I.            श्रीरंग मंदिर वृन्दावन का श्रीब्रह्मोत्सव

                   II.            ब्रज की तुलसी माला

                  III.            वृन्दावन की मल्लविद्या परंपरा

                  IV.            ब्रज की फूल बंगला कला

                  V.             ब्रज की साँझी कला

                 VI.             ब्रज के पर्वोत्सव

                 VII.            ब्रजभाषा गद्य के अप्रसारित संदर्भ

                VIII.            ब्रज के लोकगीत

3.  शोध संदर्भ संकलन परियोजना

[Research References Collection Project]

वृंदावन शोध संस्थान में संगृहीत 30,000 पांडुलिपियों, विविधतापूर्ण अभिलेखीय सामग्री, संस्थान द्वारा बाह्य स्रोतों से डिजिटल रूप में संकलित पोथियों से अप्रकाशित-अप्रसारित संदर्भों की खोज द्वारा इन्हें शोध अध्ययन की मुख्य धारा से सम्मिलित करना, इस शोध परियोजना का प्रमुख उद्देश्य है। 

अनुभाग की यह दृष्टि है कि इस परियोजना द्वारा भारतविद्या [Indology] के विभिन्न उपांगों, विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रम तथा वर्तमान में नव दृष्टि के साथ संचालित विभिन्न विषयों की पूर्व पीठिका के रूप में सुलभ संस्थान संग्रह की पांडुलिपियों से ऐसे अप्रकाशित-अप्रसारित संदर्भों को शोध अध्ययन की मुख्य धारा में लाया जाये जो अब तक हुए शोध-अध्ययनों से दूर रहे है। ब्रज संस्कृति की विविधताओं को दर्शाने वाले दुर्लभ अप्रसारित संदर्भों का इस आशय के साथ संकलन कि संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करने वाले सुधीजन, ब्रज में आने वाले श्रद्धालु पर्यटक तथा भावी पीढ़ी ब्रज संस्कृति की गौरव गाथा से जुड़ी लिखित परंपरा की व्यापकता से साक्षात्कार कर सके, इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य है।

4.  ब्रजभाषा अकादमी [ Braj Bhasha academy]

ब्रजभाषा की समृद्ध लिखित तथा वाचिक परंपरा, ब्रज संस्कृति पर केन्द्रित सांस्कृतिक अध्ययन तथा नई पीढ़ी के मध्य ब्रजभाषा और संस्कृति की पुर्नस्थापना, संस्थान के प्रकल्प ब्रजभाषा अकादमी के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है। अनुभाग द्वारा इस दिशा में महत्वपूर्ण शोध कार्य करने के साथ ही इसके प्रोत्साहन हेतु विविध प्रकार की शोध गतिविधियां संचालित हैं।

5.  देवालयी राग सेवा परियोजना [Devalai Rag Seva Project]

ब्रज संस्कृति के संवर्द्धन में यहां की देवालयी परंपराओं का महत्वपूर्ण योगदान है। समय के प्रवाह एवं अन्य कारणों से आज कई परंपरायें सीमित हुई हैं अथवा विलुप्ति के कगार पर हैं। इसी क्रम में संस्थान के प्रकल्प शोध एवं प्रकाशन अनुभाग द्वारा ब्रज की समृद्ध संगीत परंपरा को दृष्टिगत कर देवालयों से जुड़े समाज गायन, कीर्तन, हवेली संगीत एवं ध्रुपद गायन आदि के संरक्षण तथा इनसे जुड़ी लिखित एवं वाचिक परंपरा के दस्तावेज़ीकरण की दिशा में सार्थक प्रयास करते हुए देवालयी राग सेवा परियोजना आरंभ की है। नई पीढ़ी में इन परंपराओं के प्रति रूचि पैदा करना तथा इनके संरक्षण की दिशा में इस परंपरा पर केन्द्रित अध्ययन-शोध, प्रकाशन तथा सतत कार्यशालाओं का संचालन अनुभाग द्वारा कराया जाता है।

6.      पाण्डुलिपि चयन/निर्धारण/संपादन 

[Manuscript Selection/Sorting/Editing]

संस्थान को समय-समय सुलभ होने वाली पाण्डुलिपियों के निर्धारण [Sorting], प्राथमिक सूचीकरण [First Hand Cataloguing], में सहयोग तथा संपादन हेतु विषयों का चयन एवं पाण्डुलिपि अध्ययन से जुड़ीं समृद्ध परंपराओं की खोज और तदनुसार संपादन आदि के कार्य अनुभाग की प्रमुख गतिविधियों में सम्मिलित हैं।

7.  शोध पत्रिका - ब्रज सलिला [Research Magzine - Braj Salila]

अनुभाग द्वारा ब्रज संस्कृति के विविध पक्षों को आमजन के मध्य साझा करने तथा उक्त संदर्भ में शोध अध्येताओं के विचार संस्थान पटल से लोगों तक पहुंचाने के निमित्त वर्ष 1999 से ब्रज सलिला पत्रिका का सतत प्रकाशन किया जा रहा है। अनुभाग द्वारा समय-समय पर इसके विशेषांकों के रूप में ज्योतिष परंपरा, महादेवी वर्मा जन्मशती, ब्रज के भारतेंदुकालीन साहित्यकार राधाचरण गोस्वामी विद्यावागीश, हरित्रयी परंपरा के हरिराम व्यास, संगीत परंपरा, ब्रज की वन सम्पदा, श्रीचैतन्य महाप्रभु वृंदावन आगमन पंचशती अंक तथा श्रीमद्भगवद्गीता पर केन्द्रित दुर्लभ अंकों का प्रकाशन कराया गया है।

8.  वार्षिक कैलेंडर  [Annual Calender]

संस्थान के विभिन्न प्रकल्पों द्वारा वर्ष भर की जाने वाली अकादमिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का विवरण अनुभाग द्वारा इस आशय से तैयार कर, संस्कृति प्रेमी सुधीजनों तथा शोध अध्येताओं के मध्य साझा किया जाता है कि संस्थान पटल से आयोजित होने वाली शोध, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रसार व्यापकता से हो सके।

9.शोध गतिविधियां [Research Activity]

अनुभाग द्वारा लिखित तथा वाचिक परंपरा में विद्यमान संदर्भों को शोध जगत के मध्य साझा करने तथा संस्कृति के क्षेत्र में विभिन्न पक्षों पर कार्य कर रहे शोध अध्येताओं से विचार प्राप्त करने हेतु वर्ष पर्यन्त निम्नानुसार शोध गतिविधियां संचालित रहती हैं-

                                I.            संगोष्ठी [Seminar]

                              II.             व्याख्यान [Lecture]

                             III.             प्रदर्शनी [Exibhition]

                             IV.            कार्यशाला [Workshop]

10. प्रकाशन [Publication]

वर्ष 1968 में अपने स्थापना काल से ही संस्थान द्वारा शोध अध्येता, संस्कृति प्रेमी विज्ञजनों और ब्रज में आने वाले पर्यटकों की सुविधार्थ संस्कृति अध्ययन की विविधतापरक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रकाशन किये गये हैं। विगत 05 दशकों की शोध यात्रा में संस्थान ने अपने संग्रह में विद्यमान बंगला, संस्कृत, ब्रजभाषा, गुरूमुखी आदि पांडुलिपियों का सूचीकरण [Cataloguing]  करने के साथ ही अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों का प्रकाशन ख्यातिलब्ध विद्वानों के सहयोग से समय-समय पर किया। इस दिशा में अनुभाग ने वर्तमान तक अपने प्रकाशनों की गौरवशाली परंपरा स्थापित की है।