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वृन्दावन शोध संस्थान : एक दृष्टि

ग्रंथ प्रभु के विग्रहध्येय वाक्य को सार्थक करते हुए वृन्दावन शोध संस्थान ने विगत पाँच दशकों से अधिक समय में ब्रज संस्कृति के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक पक्षों पर विविधतापूर्ण कार्य करने के साथ ही जहाँ एक ओर शोध अध्येताओं के लिये अध्ययन का मार्ग प्रशस्त किया है, वहीं ब्रज में आने वाले पर्यटकों के लिये भी ब्रज संस्कृति से साक्षात्कार कराने वाले अनेक पक्षों को अध्येताओं की सुविधार्थ सहज सुलभ कराया है।

ब्रज संस्कृति तथा यहाँ विद्यमान साहित्यिक सम्पदा के संरक्षण हेतु श्रीराधाकृष्ण की रासस्थली वृन्दावन में वृन्दावन शोध संस्थान की स्थापना विहार पंचमी के अवसर पर 24 नवंबर, 1968 तदनुसार संवत् 2025, मार्गशीर्ष माह में शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि के दिन रविवार को हुई थी। संस्थान का उद्घाटन संस्थापक स्व॰ डॉ॰ रामदास गुप्त के द्वारा लोई बाज़ार स्थित श्रीनारायण धर्मशाला में तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री भारतीय ज्ञान परम्परा के विद्वान डॉ॰ कर्ण सिंह के द्वारा किया गया था। डॉ॰ रामदास गुप्त स्कूल ऑफ इंडियन एण्ड अफ़्रीकन स्टडीज़ यूनिवर्सिटी लंदन में हिन्दी के प्रोफ़ेसर होने के साथ ही एक अच्छे कवि भी थे। आरम्भ में डॉ॰ रामदास गुप्त ने अपने दृढ़ संकल्प तथा सीमित संसाधनों के द्वारा इस संस्थान को गति प्रदान की। 

पवित्र उद्देश्य तथा समर्पण भाव के चलते शनैः-शनैः संस्थान को ख्याति प्राप्त होती गई तथा कालान्तर में इसे भारत सरकार तथा उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति विभागों के द्वारा अनुदान प्राप्त होने लगा। इसी दौरान सन् 1985 में संस्थान रमणरेती स्थित वर्तमान स्थल पर स्थानान्तरित हुआ, जहाँ आज यह निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। आयकर अधिनियम की धारा 80-जी के अंतर्गत छूट प्राप्त इस संस्थान को सेवाभावी उदार महानुभावों का सहयोग भी प्राप्त हो रहा है।